ऐसा प्यार किसी ने देखा हो मुझसे बतायें, के अख मेरे

ऐसा प्यार किसी ने देखा हो मुझसे बतायें, के अख मेरे

जंगबहादुरगंज खीरी

*ऐसा प्यार किसी ने देखा हो मुझसे बतायें, के अख मेरे*

       

  यहां हम बात करते हैं एक पुत्र और माता की, प्रेम कहानी व सच्चे प्यार की। मां के प्रति ऐसा प्यार सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग में भी नहीं देखा है। 

*आईए बताते हैं मातृभक्त की,सच्ची कहानी* 

जंगबहादुर गंज खीरी :  बता दें कि एक थे, विक्रम सिंह जी जो केन ग्रोवर्स इण्टर कालेज में शिक्षक थे, जो जनपद हरदोई के ग्राम कमालपुर तहसील शहाबाद के रहने बाले थें। वह अपने बिधालय में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की वजह से उन्होंने अपना एक घर जनपद लखीमपुर खीरी के पसगंवा ब्लॉक के बरखेरिया जांट गांव में बना लिया। जहां रह कर पूरी निष्ठा और लगन से बच्चों को शिक्षा देते थे,सन 1993 में विक्रम सिंह जी रिटायर हो गये, उसके बाद भी बच्चों को फ्री शिक्षा देने कार्य करते रहे, इसी दौरान 2004में इनका देहान्त हो गया।इनकी शिक्षा से काफी छात्र ऊंचे-ऊंचे पदों पर विराजमान हैं इन्होने अपने मान प्रतिष्ठा को बरकरार रखने के लिए अपने तीनों पुत्रों को शिक्षक बनाने का संकल्प लिया, जिसमें सबसे बड़े पुत्र अनिल कुमार सिंह 61वर्ष के अध्यापक हैं।

जो वर्तमान समय में सैगल इण्टर कालेज नैमिषशारण में, ब दूसरे पुत्र अमिय सिंह 55 वर्ष जो केन ग्रोवर्स इण्टर कालेज जंगबहादुर गंज में शिक्षा दें रहे हैं।और तीसरे भाई अनुराग सिंह जो केन ग्रोवर्स इण्टर कालेज में टीचर रह चुके हैं। एक पुत्री है जिसका नाम संध्या रागिनी हैं इनकी शादी महीप सिंह निवासी ठिगरी जलालाबाद शाहजहांपुर के साथ हुई। अनुराग सिंह ने अपनी मां की सेवा के बास्ते अपनी नौकरी छोड़ दी।पर अपनी जन्म देने वाली मां मिथिलेश कुमारी को नहीं छोड़ा इतने बड़े परिवार में अनुराग सिंह अकेले मां के साथ रहकर खाना बनाना, खिलाना दवाई देना, कपड़े साफ करना, नहलाना धुलाना, टटटी पेशाब करना, ब एक पल के लिए भी इधर से उधर न होना , समय से खाना,समय से दवाई देना,बात यही खत्म नहीं होती, इन्होने मां की सेवा करने के वास्ते 45 वर्ष का समय लगा दिया, मां की सच्ची सेवा करने के बास्ते अपनी शादी भी नहीं की, इनका कहना हैं कि मैं अगर शादी कर लेता तो मेरी मां की सेवा में दिक्कत होती। इनके जीवन का आधा समय मां की सेवा में ही गुजर गया, अगर कहीं जाते तो थोड़ी देर बाद कहने लगते थे कि मुझे मां को खाना देना है दवाई देना है। दिनांक 27 अगस्त 2023 को मां मिथिलेश कुमारी को बुखार आ गया, तो 82 वर्षीय मां को कृष्णा नर्सिंग होम शाहजहांपुर लेकर गये, जहां डॉक्टर द्वारा गलत इलाज करने से मां की पेशाब रुक गयी,और किडनी में कमी आ गयी।

जिसके बाद मातृभक्त ने डॉक्टर से विनय प्रार्थना की, कि मेरी मां को बचा लीजिए, डाक्टर ने हाथ खड़े कर दिये, तब मातृभक्त अनुराग सिंह ने आनन-फानन में गाड़ी की व्यवस्था कर लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया जहां करीब 1माह 6 दिन इलाज चला। जिसमें 50लाख रुपये का खर्चा हुआ, फिर भी डाक्टर अनुराग सिंह की मां को नहीं बचा पायें और 27 सितम्बर की शाम को 7:03बजे देहान्त हो गया। देहान्त के बाद अन्तिम संस्कार बरखेरिया जांट शमशानघाट पर किया गया‌ यहां उनका बड़ा परिवार, व नाते रिश्तेदार भारी मात्रा में व उनके कुशल व्यवहार के चलते बड़ी संख्या में ग्रामवासी व पत्रकार बन्धु मौजूद रहे। अनुराग सिंह का बो हाल था की उनकी मां के सामने भगवान भी कुछ नही।

कहानी से इतनी सीख मिलती हैं कि आजकल के लोग मां को भूल जाते हैं शादी करने के बाद बीबी बच्चों को देखते हैं, और बूढ़े मां बाप को घर से बाहर निकल देते हैं जो दर दर भटकते फिरते हैं, इसलिए भगवान से प्रार्थना है कि अनुराग सिंह जैसा ही मातृभक्त सब माताओं के गर्भ से पैदा हो जो मां की सेवा पूरी निष्ठा से कर सकें। मुझे तो चारों युगों में ऐसी कहानी जन्म देने वाली मां की नहीं सुनी, एक भक्त श्रवण हुए वो अपने अंधे माता पिता की सेवा की। मगर इन्हें श्रवण की उपाधि तो नहीं, क्योंकि वह माता-पिता दोनों की सेवा में लगे रहे। पर कलियुग में मां के प्रति इतनी श्रद्धा निष्ठा और सेवा भाव रखने बाला पुत्र हमने अपने जीवन में न देखा न सुना। भगवान ऐसे बेटे को लम्बी आयु दे, ब मां को स्वर्ग में स्थान दें