वित्त वर्ष 2022-23 में इन्हें इस मद में मिलने वाली दूसरी किस्त रोक दी गई। 31 मार्च तक हिसाब न देने की वजह से इन्हें मिलने वाला 11.50 करोड़ रुपये लैप्स हो गया है।

वित्त वर्ष 2022-23 में इन्हें इस मद में मिलने वाली दूसरी किस्त रोक दी गई। 31 मार्च तक हिसाब न देने की वजह से इन्हें मिलने वाला 11.50 करोड़ रुपये लैप्स हो गया है।

पहली किस्त में बड़े जिलों को 75 लाख रुपये व छोटे जिलों को 50 लाख रुपये दिए गए। शासन ने इन जिलों को दूसरी किस्त देने की कार्यवाही शुरू की तो मुख्यमंत्री कार्यालय ने पिछले वर्षों में दी गई राशि के खर्च का ब्योरा तलब कर लिया। पता चला कि तमाम जिलों में वित्तीय वर्ष 2007-08 से उपयोग की गई राशि का हिसाब-किताब ही नहीं दिया था।

इसके बाद उच्च स्तर से निर्देश दिया गया कि जब तक पिछले वर्षों में मिली राशि का हिसाब नहीं दिया जाता, किसी भी जिले को दूसरी किस्त जारी नहीं की जाएगी। आनन-फानन में जिलों ने हिसाब-किताब भेजने की कार्यवाही शुरू की। बीते मार्च माह तक जिन 56 जिलों ने हिसाब भेजा, उनकी दूसरी किस्त जारी कर दी गई। बाकी 19 जिलों का भुगतान नहीं किया गया। 


जिन 19 जिलों की राशि रोकी गई, उनमें आठ जिले 1.5-1.5 करोड़ और 11 जिले 1-1 करोड़ पाने वाले हैं। इस तरह इन जिलों को राशि जारी ही नहीं की गई। प्रमुख सचिव नियोजन आलोक कुमार ने बताया कि कई जिलों ने कुछ वर्षों का हिसाब भेजा, लेकिन कई वर्षों का नहीं भेज पाए। ऐसे जिलों का भुगतान नहीं किया जा सका।


क्रिटिकल गैप का नियमित नहीं मांगा जाता हिसाब
शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि क्रिटिकल गैप फंड के कार्यों की पहचान से कार्य की स्वीकृति, भुगतान व सत्यापन तक की पूरी कार्यवाही डीएम के ही स्तर से होती है। ये बहुत छोटे-छोटे काम होते हैं, जिनकी मंजूरी शासन से लेने की जरूरत नहीं होती है। लिहाजा, इनका नियमित हिसाब भी नहीं मांगा जाता था। हालांकि, योजना के नियमों में व्यवस्था है कि कार्यवार वित्तीय व भौतिक प्रगति की सूचना तय प्रारूप पर आवश्यक रूप से माह की 7 तारीख तक नियोजन विभाग को दी जाएगी। इसके अलावा स्वीकृत राशि प्रत्येक दशा में 31 मार्च तक उपयोग कर ली जाएगी और इसका पूरा लेखाजोखा नियोजन विभाग को 31 मार्च तक उपलब्ध कराया जाएगा। मगर, यह व्यवस्था लंबे समय तक नजरंदाज होती रही।